Friday, September 9, 2011

वेदों में इन्द्र

वेदों में इन्द्र
मुझे लगता है कि वैदिक काल में चूंकि प्रकृति को ही विभिन्न देवो के रूप में कल्पित गया जैसे भूमि जल के लिए वरुण देव, अग्नि देव , वायु देव , सूर्य देव , चन्द्र देव, प्रभात कि देवी उषा , वर्षा के देव इन्द्र आदि आदि . यह एक खोज थी अर्थात देवो की खोज , सबसे पहले उन्होंने प्रकृति को ही देव मान कर पूजा की . धीरे धीरे उन्होंने कल्पना की होगी बाकी के सभी देव किसी एक शक्ति के अधीन रहकर कार्य करते होंगे , अतः इन्द्र को देवों का राजा माना होगा . और कुछ सौ वर्षों बाद यही खोज बढ़ते बढ़ते इसके ऊपर की सत्ता की कल्पना की होगी कि ये संपूर्ण प्रकृति देव तथा इनके राजा भी किसी परम शक्ति के अधीन होंगे . इसलिए हो सकता है कि त्रिदेवो कि कल्पना की होगी इनको भी भी अलग कार्यो सृजन , पालन, संहार आदि के रूप में कल्पना की होगी , इतने पर भी उनका मन स्थिर नहीं हो पाया इसलिए एक देव परम शक्ति परम ब्रम्ह कि कल्पना की होगी . सभी देवो को यही इसी परम ब्रम्ह के रूप में माना गया है . यह देवो के खोज कि कहानी हो सकती है .
अब इन्द्र के बारे में , इन्द्र को कहा जाता है कि ऋग्वेद में वह मुख्या देव है इसलिए क्योकि उसके सूक्त ज्यादा है, पर ये सही हो जरुरी नहीं , वहां सभी देवो का सर्वशक्तिमान मान कर गुणगान किया गया है , कई विद्वानों ने कहा भी है कि उस समय कोई एक देव बड़ा है ऐसा नहीं पता चलता .
इससे पता चलता है कि इन्द्र सबसे बड़ा देवता है यही सत्य नहीं है.
पुराणों के समय में ऋषियों ने समाज को यह सन्देश देने के लिए कि गलत कार्य करने वाला देवता हो या दानव , सभी को उसका फल भुगतना पड़ता है , ऐसे में तुच्छ मानव की क्या मजाल . अतः सभी को सत्कार्य ही करना चाहिये . पुराणों में इन्द्र ही नहीं , अनेको देव जैसे ब्रम्हा ,
यहाँ तक की त्रि देवियों को भी अनुसुइया के सामने हारते दिखाया गया है , ज्यादातर अहंकार के फल के बारे में ही ये कथाये बनायी गयी है .
इस तरह कह सकते है कि इन्द्र को गलत निरुपित करना ये समाज को सन्देश देने के लिए है . इन्द्र को सदा के लिए व्यभिचारी कपटी छली समझना हमारी भूल है ,
वर्षा के देव इन्द्र , आपने बदनाम हो कर जो सीख हमें दी है , उसे नमन ..... जय सनातन